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कोरोना से एकजुट होकर निपटने में विश्व नाकाम

 

गुटेरेस ने कोरोना महामरी के दौरान दुनिया में बढ़ी आर्थिक असमानता, देशों के बीच तालमेल की कमी और वैक्सीन को लेकर मची होड़ पर कड़े शब्दों में दुनिया भर के अमीर देशों की आलोचना की है. गुटेरेस ने ठोक कर कहा है कि दुनिया एकजुट होकर कोरोना से निपटने में नाकाम रही.

एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के पहले साल में दुनिया के सबसे अमीर तबके की धन संपत्ति आश्चर्यजनक रूप से साढ़े छह ट्रिलियन डॉलर बढ़ गई.

पूरी दुनिया को कोरोना से जूझते एक साल से ज्यादा का समय गुजर गया. साढ़े चैदह करोड़ से ज्यादा लोग बीमार पड़ चुके हैं और साढ़े तीस लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और अभी भी ये महामारी काबू में आती नहीं दिख रही है. कई देश दूसरी, तीसरी के बाद चौथी लहर का शिकार हो रहे हैं. बचाव के लिए कामधंधे बंद होने से ज़्यादातर देशों की अर्थव्यवस्थाएं चरमरा चुकी हैं. बदहाल होती माली हालत एक और भयावह तबाही का संकेत दे रही है.

हैरत की बात है कि ऐसे अंदेशों के बावजूद दुनिया में कहीं कोई व्यवस्थित कार्ययोजना बनाई जाती नहीं दिख रही है. शायद इसीलिए महामारी से पैदा हालात संभालने में दुनिया की नाकामी पर संयुक्त राष्ट्र के जनरल सेक्रेटरी एंटोंनियो गुटेरेस ने हाल ही में एक सनसनीखेज प्रतिक्रिया दी है.

गुटेरेस ने कोरोना महामरी के दौरान दुनिया में बढ़ी आर्थिक असमानता, देशों के बीच तालमेल की कमी और वैक्सीन को लेकर मची होड़ पर कड़े शब्दों में दुनिया भर के अमीर देशों की आलोचना की है. गुटेरेस ने ठोक कर कहा है कि दुनिया एकजुट होकर कोरोना से निपटने में नाकाम रही. इससे भी ज्यादा गंभीर बात ये कि इस दौरान आर्थिक असमानता की खाई बहुत चैड़ी हो गई. पिछले एक साल में अमीर और ज्यादा अमीर हो गए और गरीब बद से बदतर हालात में पहुंच गए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के पहले साल में दुनिया के सबसे अमीर तबके की धन संपत्ति आश्चर्यजनक रूप से साढ़े छह ट्रिलियन डॉलर बढ़ गई. यह आंकड़ा चैंकाने वाला है. क्योंकि जब कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रहीं थीं, काम धंधे बंद पड़े थे और बेरोजगारी के आंकड़े आसमान छू रहे थे, तब दुनिया का एक तबका ताबड़तोड़ मुनाफा कमा रहा था. बहुत संभव है कि इसीलिए संयुक्तराष्ट्र महासचिव ने वैश्विक आपदा के दौरान मुनाफा कमाने वाले लोगो से वेल्थ टैक्स वसूलकर आर्थिक असमानता की खाई पाटने की बात कही है. गुटेरेस का यह सुझाव ऐसे नाजुक दौर में आया है जब दुनिया की कई सरकारें कोरोना से निपटने के काम में भीतर ही भीतर पैसे की तंगी से परेशान हैं. गुटेरेस ने कहा है कि कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई और महामारी से बचाव के कामों के खर्च के लिए अंधाधुंध मुनाफा कमाने वालों से पैसा लेने का इंतजाम किया जाना चाहिए. दुनिया पर आए इस अपूर्व संकट से निपटने के लिए गुटेरेस की बात पर हर देश को गौर ज़रूर करना चाहिए.
गुटेरेस के सुझाव को मानकर इस समय वैश्विक समाज में बढ़ी आर्थिक गैरबराबरी की खाई को कुछ कम तो ज़रूर किया जा सकता है. वैसे खुद मुनाफा कमाने वालों की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उन्होंने आपदा की जिन  परिस्थितियों में असाधारण रफ्तार से मुनाफा कमाया, उसका एक वाजिब हिस्सा महामारी से निपटने में लगा दें.


ऐसी ही एक अपील यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की तरफ से पिछले साल अक्टूबर में भी की गई थी. तब दुनिया के प्रमुख 2000 अरबपतियों से भुखमरी से निपटने के लिए मदद देने के लिए कहा गया था. तब संयुक्त राष्ट्र ने अंदेशा जताया था कि अभी अगर कमजोर देशों की मदद नहीं की गई तो एक साल बाद एक बड़ी आबादी अपूर्व भुखमरी का सामना कर रही होगी. आज ठीक वैसा ही होता नज़र आ रहा है.

इतना ही नहीं, दुनियाभर की सरकारों का कोरोना से निपटने का जो रवैया रहा उस पर भी संयुक्तराष्ट्र प्रमुख ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. गुटेरेस ने यूएन इकॉनमिक एंड सोशल कांउसिल की फाइनेंशियल फॉर डेवलपमेंट फोरम से कहा है कि हम बहुपक्षीय स्तर पर वैसा कोई काम नहीं कर पाए, जैसा होना चाहिए था.उन्होने कहा कि इस दौरान 30 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, कोरोना संक्रमण फैलता रहा और पूरी दुनिया 90 साल के इतिहास में मंदी के सबसे बुरे दौर मे पंहुच गई है. बारह करोड़ लोग गरीबी की चरम अवस्था में पहुंच चुके हैं. इस दौरान साढ़े 25 करोड़ लोग अपना पूर्णकालिक रोज़गार खो चुके हैं. गुटेरेस ने कहा है कि महामारी से निपटने में दुनिया के देश मिलजुलकर काम करने में बुरी तरह नाकाम रहे. टीकाकरण अभियान में कई देशों के बीच हद दर्जे की असमानता तो बस इसका सिर्फ एक उदाहरण है. यानी ऐसे कई सबूतों पर गौर किया जाना चाहिए.

अभी तक बहुतेरे अमीर से लेकर गरीब देशों में तो  टीकाकरण को लेकर कोई व्यवस्थित कार्य योजना तक नहीं दिखाई दी है. कई जगहों से आए दिन वैक्सीन की कालाबाजारी और जमाखोरी जैसी खबरें आ ही रही हैं. कई अमीर देशों ने वैक्सीन की अंधाधुंध खरीद शुरू कर दी है जिससे कई गरीब और विकाशसील देशों में टीकाकरण अभियान शुरू तक नहीं हो पा रहा है.
यहां तक कि उन देशों के स्वास्थ्यकर्मचारियों और वृद्ध आबादी तक भी वैक्सीन नहीं पहुंच पाई है. अभी तक जितना टीकाकरण हो पाया है उसमें सिर्फ 10 देशों में ही 75 फीसद टीके लग गए हैं. यहां गौर करने की बात ये है कि कोरोना संक्रमण से कोई 220 देश प्रभावित हैं. ऐसे में सिर्फ 10 देशों में तीन चैथाई टीकाकरण हुआ है तो इससे असमानता की खाई की भयावह चैड़ाई का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि कुछ देशों ने तो वैक्सीन खरीदने के लिए अरबों का फण्ड तैयार कर लिया है लेकिन कई दूसरे देश आर्थिक बदहाली में पहुंच गए हैं और उन देशों पर भारी कर्ज है. उनके पास और  कर्ज लेकर नागरिकों की ज़िन्दगियां  बचाने की गुंजाइश तक नहीं बची. संयुक्तराष्ट्र ने अपील की है कि कर्ज में डूबे देशों की किश्तें 2022 तक खिसका दी जाएं ताकि वे देश महामारी से निपटने और टीकाकरण अभियान पर खर्च कर सकें. इस काम के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलजुलकर कोई उपाय ढूंढने की जरूरत है.

जिक्र इस बात का भी किया जा सकता है कि ये वह समय है जब स्वास्थ्य सेवाओं के साथ साथ रोजगार और शिक्षा में भी न्यूनतम निवेश करते रहने की जरूरत है. खासतौर पर अत्यल्प विकसित देशों के लिए न्यूनतम 20 फीसद टीकाकरण का लक्ष्य हासिल करने के लिए आर्थिक सहायता की फौरन से पेश्तर जरूरत है. इन देशों के लिए दुनिया को एकजुट होकर इसलिए भी लगने की जरूरत है क्योंकि वैश्विक महामारी के दौर में जब तक सब सुरक्षित नहीं तब तक कोई सुरक्षित नहीं. अगर किसी भी देश में वायरस बचा रहा तो उसके पलट कर वापस आने का खतरा हमेशा बना रहेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.) 

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